पत्रकार विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का मुलायम और अखिलेश ने किया विमोचन
'श्रमजीवी पत्रकारों को अधिक संख्या में पुस्तकें लिखनी चाहिए ताकि जनसाधारण का ज्ञान और बढ़े।' लोहिया पार्क में एक सार्वजनिक सभा में पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव तथा उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पत्रकार के. विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का लोकार्पण करते समय यह सुझाव दिया। अनामिका (दिल्ली) द्वारा 45 लेखों का यह संग्रह विभिन्न राष्ट्रीय दैनिक में छपी रचनाओं का संकलन हैं। इसमें विविध विषयों पर विचारोत्तेजक लेख हैं।
इस अवसर पर श्री विक्रम राव ने कहा इतिहास ऐसी साजिशों की कथाओं से भरा है, जब जिह्ना को सुन्न किया गया। कलम को कुंद बनाया गया। अभिव्यक्ति को अवरुद्ध कर दिया गया। मगर विचार निर्बाध रहे क्योंकि उसे कैद करने की जंजीर इजाद नहीं हुई है। श्रमजीवी पत्रकार की लेखनी कबीर की लुकाटी की भांति है। घर फूंक कर वह जनपक्ष में जूझती है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा स्वाधीन भारत में अभिव्यक्ति के खिलाफ क्रूरतम दमनचक्र 1975-77 में चला था, तब विक्रम राव दूसरी जंगेआजादी की प्रथम पंक्ति में थे। अखबारी सेंशरशिप से लड़ते हुए वे भारत की छह जेलों और थानों में पुलिसिया अत्याचार सहते रहे। वे बाकियों से जुदा थे और हैं।
'श्रमजीवी पत्रकारों को अधिक संख्या में पुस्तकें लिखनी चाहिए ताकि जनसाधारण का ज्ञान और बढ़े।' लोहिया पार्क में एक सार्वजनिक सभा में पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव तथा उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पत्रकार के. विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का लोकार्पण करते समय यह सुझाव दिया। अनामिका (दिल्ली) द्वारा 45 लेखों का यह संग्रह विभिन्न राष्ट्रीय दैनिक में छपी रचनाओं का संकलन हैं। इसमें विविध विषयों पर विचारोत्तेजक लेख हैं।
इस अवसर पर श्री विक्रम राव ने कहा इतिहास ऐसी साजिशों की कथाओं से भरा है, जब जिह्ना को सुन्न किया गया। कलम को कुंद बनाया गया। अभिव्यक्ति को अवरुद्ध कर दिया गया। मगर विचार निर्बाध रहे क्योंकि उसे कैद करने की जंजीर इजाद नहीं हुई है। श्रमजीवी पत्रकार की लेखनी कबीर की लुकाटी की भांति है। घर फूंक कर वह जनपक्ष में जूझती है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा स्वाधीन भारत में अभिव्यक्ति के खिलाफ क्रूरतम दमनचक्र 1975-77 में चला था, तब विक्रम राव दूसरी जंगेआजादी की प्रथम पंक्ति में थे। अखबारी सेंशरशिप से लड़ते हुए वे भारत की छह जेलों और थानों में पुलिसिया अत्याचार सहते रहे। वे बाकियों से जुदा थे और हैं।
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