Monday, 28 October 2013

आई एफ डब्ल्यू जे देश के पत्रकारों का एकमात्र संगठन: सतीश सक्सेना

 
भोपाल 28 अक्टूबर 2013। इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) के 63 वें स्थापना दिवस पर एम.पी.यूनिट के संयोजक साथी सतीश सक्सेना ने कहा कि आई.एफ.डब्ल्यू.जे. देश के पत्रकारों का एक मात्र संगठन है, जो निरंतर श्रमजीवी पत्रकारों के कल्याण की दिशा में सक्रिय है। 
श्री सक्सेना भोपाल में आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे। कार्यक्रम का संचालन सलमान खान ने किया। कार्यक्रम  में भोपाल की छानबीन समिति के संयोजक साथी राजेन्द्र कश्यप ने आव्हान किया है कि गोवा अधिवेशन के संकल्पों को पूरा करने का समय आ गया है। हमारे सामने एक साथ केन्द्र तथा राज्य सरकार के साथ चुनौती के साथ खड़ा होना पड़ेगा। 
कार्यक्रम में महेश सिंह, राजेन्द्र मेहता, जवाहर सिंह राजू खत्री, दीपक कुमार सहित अनेक पत्रकार उपस्थित थे। 

आई एफ डब्ल्यू जे देश के पत्रकारों का एकमाात्र संगठन:सतीश सक्सेना


भोपाल। 28 अक्टबर 2013 इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) के 63 वें स्थापना दिवस पर एम.पी.यूनिट के संयोजक साथी

सतीश सक्सेना ने कहा कि आई.एफ.डब्ल्यू.जे. देश के पत्रकारों का एक मात्र संगठन है,जो निरंतर श्रमजीवी पत्रकारों के कल्याण की दिशा में सक्रिय

है।
श्री सक्सेना भोपाल में आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे। कार्यक्रम का संचालन सलमान खान ने किया। कार्यक्रम  में भोपाल की

छानबीन समिति के संयोजक साथी राजेन्द्र कश्यप ने आव्हान किया है कि गोवा अधिवेशन के संकल्पों को पूरा करने का समय आ गया है। हमारेे

सामने एक साथ केन्द्र तथा राज्य सरकार के साथ चुनौती के साथ खड़ा होना पड़ेगा ।
कार्यक्रम में महेश सिंह,राजेन्द्र मेहता,जवाहर सिंह राजू खत्री,दीपक कुमार सहित अनेक पत्रकार उपस्थित थे।


राजेेन्द्र कश्यप  संयोजक वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल (सदस्यता छानबीन समिति)  मोबाईल क्रमांक 9753041701

Saturday, 26 October 2013

क्रांतिकारी पत्रकार स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म दिन मनाया गया

क्रांतिकारी पत्रकार स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म दिन मनाया गया
 भोपाल। 26 अक्टूबर स्वर्गीय गणेश विद्यार्थी क्रांतिकारी पत्रकार इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट से संबंद्ध भोपाल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन संभागीय इकाई एवं गणेश शंकर विद्यार्थी स्मृति संस्थान के सदस्यों के संयुक्त तत्वाधान में वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र कश्यप की अध्यक्षता में क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के जन्म दिवस पर एक बैठक में सर्वप्रथम उनके चित्र पर माल्यापर्ण किया गया पश्चात् में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर वक्ताओं ने प्रकाश डालते हुए उनको स्मरण किया । बैठक में दिल्ली से पधारे मुुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार विद्याधर चतुर्वेदी ने उनके जीवन की विभिन्न  घटनाओं से प्रेणा लेने का आव्हान किया।
देश केी आजादी की लड़ाई में पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाया था। महात्मा मोहनदास करमचन्द गांधी,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ ही गणेश शंकर विद्यार्थी का विशिष्ट स्थान है। क्र ांतिकारी योद्धा पत्रकार के रूप में और अंग्रेजो के विरूद्ध विचारों की अग्नि से धधकती लेखनी से ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब करने में गणेश शंकर विद्यार्थी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आजादी की लड़ाई में हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर कानपुर के एक दंगे में शहीद हो गये । क्रांतिकारी पत्रकार के रूप में भारतीय पत्रकारों की स्वतंत्रता के लड़ाई के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षर में हमेशा लिखा रहेगा। सभा में  युवा विद्यार्थी पत्रकारों ने भारी संख्या में उपस्थिति सराहनीय रही। आभार प्रतिवाद डाट काम के संपादक श्री दीपक शर्मा ने प्रगट किया।

                                                                                          रोहन सिंह
                                                                                                 कार्यालय सचिव
                                                                                             वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन
                                                                                 एम0आई0जी0 11/4 गीतांजली कांपलेक्स भोपाल

Friday, 25 October 2013

warkingjournlist


पत्रकारिता के पुरोधा गणेशशंकर विद्यार्थी गणेशशंकर विद्यार्थी का जन्म (26 अक्टूबर, 1890) आश्विन शुक्ल 14, रविवार सं. 1947 को अपनी ननिहाल, इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में श्रीवास्तव (दूसरे) कायस्थ परिवार में हुआ। इनके पिता मुंशी जयनारायण हथगाँव, जिला फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। माता का नाम गोमती देवी था। पिता ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे। वहीं विद्यार्थी जी का बाल्यकाल बीता तथा शिक्षादीक्षा हुई। विद्यारंभ उर्दू से हुआ और 1905 ई. में भेलसा से अँगरेजी मिडिल परीक्षा पास की। 1907 ई. में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला कालेज में भर्ती हुए। उसी समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और इलाहाबाद के हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सयेग देने लगे। लगभग एक वर्ष कालेज में पढ़ने के बाद 1908 ई. में कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. मासिक की नौकरी की। परंतु अंग्रेज अफसर से झगड़ा हो जाने के कारण उसे छोड़कर पृथ्वीनाथ हाई स्कूल, कानपुर में 1910 ई. तक अध्यापकी की। इसी अवधि में सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) तथा हितवार्ता (कलकत्ता) में समय समय पर लेख लिख्ने लगे। 1911 में विद्यार्थी जी सरस्वती में पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए। कुछ समय बाद "सरस्वती" छोड़कर "अभ्युदय" में सहायक संपादक हुए। यहाँ सितंबर, 1913 तक रहे। दो ही महीने बाद 9 नवंबर, 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक प्रताप के नाम से निकाला। इसी समय से विद्यार्थी जी का राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ। पहले इन्होंने लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद आप उनके अनन्य भक्त हो गए। श्रीमती एनीं बेसेंट के होमरूल आंदोलन में विद्यार्थी जी ने बहुत लगन से काम किया और कानपुर के मजदूर वर्ग के एक छात्र नेता हो गए। कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर "प्रताप" में लेख लिखने के संबंध में ये 5 बार जेल गए और "प्रताप" से कई बार जमानत माँगी गई। कुछ ही वर्षों में वे उत्तर प्रदेश (तब संयुक्तप्रात) के चोटी के कांग्रेस नेता हो गए। 1925 ई. में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागतसमिति के प्रधान मंत्री हुए तथा 1930 ई. में प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुए। इसी नाते सन् 1930 ई. के सत्याग्रह आंदोलन के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम "डिक्टेटर" नियुक्त हुए। साप्ताहिक "प्रताप" के प्रकाशन के 7 वर्ष बाद 1920 ई. में विद्यार्थी जी ने उसे दैनिक कर दिया और "प्रभा" नाम की एक साहित्यिक तथा राजनीतिक मासिक पत्रिका भी अपने प्रेस से निकाली। "प्रताप" किसानों और मजदूरों का हिमायती पत्र रहा। उसमें देशी राज्यों की प्रजा के कष्टों पर विशेष सतर्क रहते थे। "चिट्ठी पत्री" स्तंभ "प्रताप" की निजी विशेषता थी। विद्यार्थी जो स्वयं तो बड़े पत्रकार थे ही, उन्होंने कितने ही नवयुवकों को पत्रकार, लेखक और कवि बनने की प्रेरणा तथा ट्रेनिंग दी। ये "प्रताप" में सुरुचि और भाषा की सरलता पर विशेष ध्यान देते थे। फलत: सरल, मुहावरेदार और लचीलापन लिए हुए चुस्त हिंद की एक नई शैली का इन्होंने प्रवर्तन किया। कई उपनामों से भी ये प्रताप तथा अन्य पत्रों में लेख लिखा करते थे। अपने जेल जीवन में इन्होंने विक्टर ह्यूगो के दो उपन्यासों, "ला मिजरेबिल्स" तथा "नाइंटी थ्री" का अनुवाद किया। हिंदी साहित्यसम्मलेन के 19 वें (गोरखपुर) अधिवेशन के ये सभापति चुने गए। विद्यार्थी जी बड़े सुधारवादी किंतु साथ ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त थे। व्याख्याता भी बहुत प्रभावपूर्ण और उच्च कोटि के थे। स्वभाव के अत्यंत सरल, किंतु क्रोधी और हठी भी थे। कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में 25 मार्च, 1931 ई. को धर्मोन्मादी मुसलमान गुंडों के हाथों इनकी हत्या हुई। सम्पादन कार्य इसके बाद कानपुर में गणेश जी ने करेंसी ऑफ़िस में नौकरी की, किन्तु यहाँ भी अंग्रेज़ अधिकारियों से इनकी नहीं पटी। अत: यह नौकरी छोड़कर अध्यापक हो गए। महावीर प्रसाद द्विवेदी इनकी योग्यता पर रीझे हुए थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' के लिए बुला लिया। विद्यार्थी जी की रुचि राजनीति की ओर पहले से ही थी। यह एक ही वर्ष के बाद 'अभ्युदय' नामक पत्र में चले गये और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। इसके बाद सन 1907 से 1912 तक का इनका जीवन अत्यन्त संकटापन्न रहा। इन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी सम्पादन किया 

Thursday, 24 October 2013

परिचय एक श्रमजीवी पत्रकार का

परिचय एक श्रमजीवी पत्रकार का
गद्यकार, सम्पादक और टी.वी.-रेडियो समीक्षक, के. विक्रम राव श्रमपरिचय एक श्रमजीवी पत्रकार का
गद्यकार, सम्पादक और टी.वी.-रेडियो समीक्षक, के. विक्रम राव श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक दि वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रधान सपरिचय एक श्रमजीवी पत्रकार का
गद्यकार, सम्पादक और टी.वी.-रेडियो समीक्षक, के. विक्रम राव श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक दि वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रधान सम्पादक हैं। वे वाॅयस आॅफ़ अमेरिका (हिन्दी समाचार प्रभाग, वाशिंगटन) के दक्षिण एशियाई ब्यूरो में संवाददाता रहे। वे 1962 से 1998 तक दैनिक टाइम्स आॅफ़ इण्डिया (मुंबई) में कार्यरत थे। वे भारतीय प्रेस काउंसिल के 1991 से छह वर्षों तक लगातार सदस्य रहे। श्रमजीवी पत्रकारों के लिये भारत सरकार द्वारा 2008 में गठित जस्टिस जी.आर. मजीठिया वेतन बोर्ड (1996) और माणिसाणा वेतन बोर्ड के वे सदस्य थे। प्रेस सूचना ब्यूरो की केन्द्रीय प्रेस मान्यता समिति के भी पाँच वर्षों तक सदस्य थे। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फेडरेशन (IFWJ) के बारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होकर, विक्रम ने अपना तीन वर्षीय कार्यकाल 2010 से आरम्भ किया। तीसरी दुनिया का सबसे बड़ा पत्रकार संगठन IFWJ 28 अक्तूबर, 1950 में स्थापित हुआ था। आज उसके तीस हजार सदस्य 33 राज्यों व केन्द्रशासित इकाइयों में सत्रह भाषाओं के 1,260 से अधिक समाचारपत्रों, संवाद समितियों तथा टी.वी. में कार्यरत हैं। कोलम्बो सम्मेलन में एशियाई पत्रकार यूनियनों के परिसंघ के अध्यक्ष विक्रम राव निर्वाचित हुये हैं।
नई दिल्ली में जन्मे और गांधीजी के सेवाग्राम, चेन्नई, बापटला (आंध्र प्रदेश), नागपुर तथा पटना में शिक्षित, विक्रम राव ने समाजशास्त्र, अंग्रेजी व संस्कृत साहित्य में बी.ए. किया। लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एम.ए. के बाद उन्होंने स्नातकोत्तर छात्रों को अन्तर्राष्ट्रीय-कानून विषय पढ़ाया। उनका चयन भारतीय पुलिस सेवा ;प्च्ैद्ध में हो गया था, पर उन्होंने मुम्बई में टाइम्स आॅफ़ इण्डिया में रिपोर्टर होना अधिक पसन्द किया। उनका स्थानान्तरण अहमदाबाद, बड़ौदा, नागपुर, लखनऊ, हैदराबाद, गोवा, शिलंग, गुवाहाटी और भुवनेश्वर किया गया। वे दैनिक इकनामिक टाइम्स, पाक्षिक फि़ल्मफेयर और साप्ताहिक इलस्ट्रेटेड वीकली में भी काम कर चुके हैं। विक्रम राव की समाचार रपटों की चर्चा विभिन्न विधान मण्डलों तथा संसद के दोनों सदनों में होती रही हैं। मुरादाबाद, अहमदाबाद और हैदराबाद के साम्प्रदायिक दंगों पर इनकी रपट अपनी वास्तविकता और सत्यता के लिए प्रशंसित हुई। बुन्देलखण्ड और उत्तर गुजरात में अकाल स्थिति पर भेजी इनकी रपटों से सरकारी तथा स्वयंसेवी संगठनों ने तात्कालिक मदद भेजी जिससे कई प्राण बचाये जा सके। वे मुम्बई, हैदराबाद, कोचीन, दिल्ली और अहमदाबाद के पत्रकारिता संस्थानों में रिपोर्टिंग पर व्याख्याता भी हैं। करीब दो सौ दैनिक पत्र-पत्रिकाओं के स्तंम्भकार है। धर्मयुग और दिनमान में लिखते रहे। विक्रम राव की मातृभाषा तेलुगु है। वे मराठी, गुजराती तथा उर्दू भी जानते है।
प्रेस स्वाधीनता के लिए अथक संघर्षशील, विक्रम राव आपात्काल (1976) में 13 माह जेल में रहे, क्योंकि तब आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के उपाध्यक्ष होने के नाते के उन्होंने प्रेस सेंसरशिप का विरोध किया था। पटना में काले बिहार प्रेस बिल के खिलाफ प्रदर्शन करते हुये वे कैद हुये थे। उनके अनवरत प्रयास के परिणाम में पालेकर, बछावत तथा मणिसाना वेतन बोर्डों द्वारा हजारों पत्रकारों को गत वर्षों में अत्यधिक लाभ हुआ है। प्रशिक्षण तथा शैक्षिक यात्रा हेतु विक्रम ने 950 पत्रकारों को अफ्रीका, यूरोप तथा अमरीका भेजा था। विक्रम राव सभी महाद्वीपों के 49 राष्ट्रों, अमरीका, क्यूबा, रूस, चीन, मिस्र, जिम्बांव्वे, ईराक सहित, में आयोजित मीडिया गोष्ठियों मंे भाग ले चुके है।
म्पादक हैं। वे वाॅयस आॅफ़ अमेरिका (परिचय एक श्रमजीवी पत्रकार का
गद्यकार, सम्पादक और टी.वी.-रेडियो समीक्षक, के. विक्रम राव श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक दि वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रधान स
उनके पिता स्वर्गीय श्री के. रामा राव लखनऊ में जवाहरलाल नेहरू के दैनिक नैशनल हेराल्ड के 1938 में संस्थापक-सम्पादक थे। लाहौर, बम्बई, मद्रास, कोलकता तथा दिल्ली से प्रकाशित कई अंग्रेजी दैनिकों का उन्होंने सम्पादन किया था। उन्हें ब्रिटिश राज ने 1942 में कारावास की सजा दी थी। वे संसद सदस्य थे तथा आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के 1950 में प्रथम उपाध्यक्ष थे। विक्रम के ताऊजी स्वर्गीय के. पुन्नय्या कराची के मशहूर राष्ट्रवादी दैनिक सिंध आब्जर्वर के कई वर्षों तक सम्पादक थे तथा आल-इण्डिया न्यूजपेपर एडिटर्स कान्फ्रेन्स के संस्थापक-सदस्य थे।
आहार में निरामिष और सिगरेट व शराब से सख्त परहेजी, विक्रम राव एक कौटुम्बिक व्यक्ति हैं। उनके दो पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज में शिक्षित होकर भारतीय रेल में मुख्य मेडिकल निदेशक थीं।
उनका पता
7 गुलिस्ताँ कालोनी बन्दरियाबाग
लखनऊ - 226 001
तथा फोन 0522-2623939, 2235466
Website: ifwj.in
E-mail: k.vikramrao@yahoo.co.in
Or ifwj.media@gmail.com
Or k.vikramrao@gmail.com
म्पादक हैं। वे वाॅयस आॅफ़ अमेरिका (हिन्दी समाचार प्रभाग, वाशिंगटन) के दक्षिण एशियाई ब्यूरो में संवाददाता रहे। वे 1962 से 1998 तक दैनिक टाइम्स आॅफ़ इण्डिया (मुंबई) में कार्यरत थे। वे भारतीय प्रेस काउंसिल के 1991 से छह वर्षों तक लगातार सदस्य रहे। श्रमजीवी पत्रकारों के लिये भारत सरकार द्वारा 2008 में गठित जस्टिस जी.आर. मजीठिया वेतन बोर्ड (1996) और माणिसाणा वेतन बोर्ड के वे सदस्य थे। प्रेस सूचना ब्यूरो की केन्द्रीय प्रेस मान्यता समिति के भी पाँच वर्षों तक सदस्य थे। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फेडरेशन (I FWJ) के बारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होकर, विक्रम ने अपना तीन वर्षीय कार्यकाल 2010 से आरम्भ किया। ती
 

आई एफ डब्लयू जे के सम्मेलन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है

आई एफ डब्लयू जे के सम्मेलन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सम्मेलन में पंजीकृत सदस्य को उपहार - भेट - प्रतीक रूप में कोई सामग्री नहीं दी गई। जबकि वाहन भर कर बैग आए थे। मध्यप्रदेश के लगभग तीस से अधिक पत्रकारो को जानबुझ कर उक्त् सामग्री से वंचित रखने में किसी साजिश की बू आती है। पांच सौ रूपए की राशी लेने के बाद हर सम्मेलन में बीते तुमकुर सम्मेलन में हाथ घडी दी गई थी लेकिन इस बार किसी भी प्रकार की उपहार सामग्री का न दिया जाना संगठन को बदनाम करने की साजिश का एक हिस्सा हो सकता है।
रा. अध्यक्ष के विक्रमराव, महासचिव परमानंद जी पाण्डे को इस बात की जांच करवाना चाहिए कि आखिर मध्यप्रदेश के तीस लोगो को क्यूं उपहार सामग्री नहीं दी गई जबकि पूरे मध्यप्रदेश से कोटामनी के रूप में पंजीयन स्वरूप 8 हजार रूपए की राशी मैने तथा एक हजार रूपए की राशी मनोज शर्मा, पांच रूपए जगदीश पंवार तथा विनय जी डेविड ने 7 हजार रूपए की राशी जमा कर रसीदे प्राप्त की गई।
संगठन हमारा एक अभिव्यक्ति का मंच है तथा फेसबुक उसका एक माध्यम इसलिए हम अपनी बात संगठन के समक्ष रख रहे है।
धन्यवाद
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इण्डियन फ़ेडरेशन आॅफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स

आई एफ डब्लयू जे के सम्मेलन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सम्मेलन में पंजीकृत सदस्य को उपहार - भेट - प्रतीक रूप में कोई सामग्री नहीं दी गई। जबकि वाहन भर कर बैग आए थे। मध्यप्रदेश के लगभग तीस से अधिक पत्रकारो को जानबुझ कर उक्त् सामग्री से वंचित रखने में किसी साजिश की बू आती है। पांच सौ रूपए की राशी लेने के बाद हर सम्मेलन में बीते तुमकुर सम्मेलन में हाथ घडी दी गई थी लेकिन इस बार किसी भी प्रकार की उपहार सामग्री का न दिया जाना संगठन को बदनाम करने की साजिश का एक हिस्सा हो सकता है।
रा. अध्यक्ष के विक्रमराव, महासचिव परमानंद जी पाण्डे को इस बात की जांच करवाना चाहिए कि आखिर मध्यप्रदेश के तीस लोगो को क्यूं उपहार सामग्री नहीं दी गई जबकि पूरे मध्यप्रदेश से कोटामनी के रूप में पंजीयन स्वरूप 8 हजार रूपए की राशी मैने तथा एक हजार रूपए की राशी मनोज शर्मा, पांच रूपए जगदीश पंवार तथा विनय जी डेविड ने 7 हजार रूपए की राशी जमा कर रसीदे प्राप्त की गई।
संगठन हमारा एक अभिव्यक्ति का मंच है तथा फेसबुक उसका एक माध्यम इसलिए हम अपनी बात संगठन के समक्ष रख रहे है।
धन्यवाद
वदीय
रामकिशोर पंवार
ब्यूरो दैनिक पंजाब केसरी बैतूल
मालवीय वार्ड खंजनपुर बैतूल
मध्यप्रदेश
प्रदेश सचिव
एमपी वर्कीग जर्नलिस्ट यूनियन 
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इण्डियन फ़ेडरेशन आॅफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स

इण्डियन फ़ेडरेशन आॅफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स
तीसरी दुनिया का सबसे बड़ा पत्रकार संगठन भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ स्वातंत्र्योत्तर भारत में बना पत्रकारों का सर्वप्रथम टेªड यूनियन है। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. की स्थापना नई दिल्ली में 28 अक्टूबर 1950 को हुई थी। आज इस फ़ेडरेशन के 30,000 से भी अधिक प्राथमिक और सहयोगी सदस्य भारत के 35 राज्यांे और केन्द्र-शासित प्रदेशों में 17 भाषाओं के 1260 पत्र-पत्रिकाओं तथा संवाद समितियों और टी.वी. में कार्यरत हैं। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के सहयोगी श्रमिक संगठन है: समाचारपत्र कर्मचारियों का राष्ट्रीय परिसंघ, (National Federation of Newspaper Employees) कोलकता, और राष्ट्रीय संवाद समितियों एवं समाचारपत्र कर्मियों के संगठनों का महासंघ (National Confederation of Newspaper and News Agency Employees' Organisations)मुम्बई.
आई.एफ.डब्ल्यू.जे. एकमात्र ऐसा पत्रकार संगठन है जिसकी इकाइयां और शाखायें राष्ट्र के हर नगर, कस्बे और प्रकाशन केन्द्र में हैं। इन इकाईयों द्वारा प्रेस क्लब, पत्रकार भवन, प्रेस अकादमी, संदर्भ लाइब्रेरियां, प्रशिक्षण केन्द्र, अध्ययन मंच आदि संचालित होते हैं। पत्रकारिता शोध, श्रमिक संघर्ष, मानव-अधिकारों के लिये आन्दोलन, पर्यावरण संरक्षण, युद्ध-विरोधी अभियान आदि कार्यक्रमों में फेडरेशन की ये इकाईयां निरंतर क्रियाशील हैं। इन इकाइयों की अचल सम्पति की कुल लागत पन्द्रह करोड़ रूपयों से भी अधिक है।
विश्वव्यापी मीडिया कार्यक्रमों से आई.एफ.डब्ल्यू.जे. पूर्णतया जुड़ा है। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के पारस्परिक संबंध 47 राष्ट्रों की पत्रकार यूनियनों से हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.) जिनेवा, तथा यूनेस्को (UNESCO) के जनसंचार विकास के अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम (I.P.D.C., Paris) की विभिन्न योजनाओं के साथ आई.एफ़.डब्ल्यू.जे. सक्रियता से जुड़ा है। यह कोलम्बो-स्थित एशियाई पत्रकार यूनियनों के परिसंघ (Confederation of Asian Journalist Unions) से सम्बद्ध है। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. अध्यक्ष ही इस एशियाई परिसंघ के चेयरमैन भी हैं। पिछले कुछ वर्षों में फेडरेशन के कई सौ सदस्य यूरोप, अमरीका और अफ्रीकी देशों में प्रशिक्षण और सम्मेलनों में भाग लेने जा चुके हैं।
प्रथम प्रेस आयोग (जिसके सभापति न्यायमूर्ति जी.एस. राज्याध्यक्ष तथा सदस्य आचार्य नरेन्द्र देव, पूर्व राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरामन आदि थे) की संस्तुति पर केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने 1954 में ही आई.एफ.डब्ल्यू.जे. को एक प्रतिनिधि राष्ट्रीय यूनियन के रूप में मान्यता दी थी। केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ई.के. मोइडू की अध्यक्षता में केन्द्रीय श्रम मंत्रालय द्वारा गठित समिति ने 1977 में विधिवत जांच द्वारा निर्णय किया कि भारत के श्रमजीवी पत्रकारों की सर्वाधिक प्रतिनिधित्ववाली संस्था आई.एफ.डब्ल्यू.जे. ही है। मीडिया तथा श्रम-संबंधी सभी शासकीय समितियों जैसे वेतन बोर्ड, प्रेस काउंसिल, संवाददाता-मान्यता समिति, प्रेस सलाहकार परिषद तथा विदेश यात्रार्थ शिष्ट मण्डलों के लिये आई.एफ.डब्ल्यू.जे. मान्य है।
फेडरेशन के संविधान के अनुसार शीर्षपद पर अध्यक्ष होता है जिसे हजारों सदस्य राष्ट्रव्यापी प्रत्यक्ष मतदान से हर तीन वर्ष में चुनते हैं। अध्यक्ष के साथ एक प्रधान सचिव, चार उपाध्यक्ष, छह क्षेत्रीय सचिव, एक कोषाध्यक्ष तथा 17 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सामूहिक नेतृत्व करते हैं। उन सब का निर्वाचन सैकड़ों राष्ट्रीय पार्षद त्रैवार्षिकी प्रतिनिधि-अधिवेशन में गुप्त मतदान द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर करते हैं।

विगत 62 वर्षों में सतत संघर्ष द्वारा आई.एफ़.डब्ल्यू.जे. ने पत्रकारों के लिये कई श्रमिक लाभ हासिल किये हैं: जैसे 1956 में संसद द्वारा पारित सर्वप्रथम श्रमजीवी पत्रकार एक्ट जिससे काम के घंटे, वेतन कानून आदि निर्धारित हुये। समाचार पत्र उद्योग के लिये दो (1954 तथा 1980) प्रेस आयोग की रचना कराना, वेतन बोर्डों का गठन (1959 से), प्रेस परिषद की स्थापना कराना इत्यादि आई.एफ.डब्ल्यू.जे. की उपलब्धियां हैं। गांधी जयन्ती के उपलक्ष पर हिंसाग्रस्त अमृतसर (पंजाब, 1990) के स्वर्ण मन्दिर-जालियांवालां बाग परिसर में शान्ति मार्च, आतंक-पीडि़त श्रीनगर (कश्मीर) के लाल चैक तथा कन्याकुमारी में एकता मार्च, अयोध्या, गुवाहाटी, कटक, चेन्नई, कुरुक्षेत्र, रामेश्वरम, कोलकता, मैसूर, गोवा, कोल्लम, जयपुर धर्मषाल (हिप्र), माउन्ट आबू आदि में राष्ट्रीय सम्मेलन आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के हाल ही के क्रियाशल आयोजनांे में रहें हैं। अधुना इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष टाइम्स आॅफ इण्डिया के पूर्व संवाददाता साथी के. विक्रम राव ने पुनर्निवाचित होकर 2013 से अपनी तीन-वर्षीय कार्यावधि प्रारंभ की है। उनके ग्यारह-पूर्व अध्यक्षों में प्रमुख थे लखनऊ के दैनिक नेशनल हेरल्ड के सम्पादक एम. चलपति राव, बंगलौर के दैनिक डेक्कन हेरल्ड तथा दैनिक दि डाॅन के सम्पादक पोथन जोसेफ़, उत्तर प्रदेश के पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी, कलकत्ता के अधीर बनर्जी, चेन्नई के तमिल दैनिक मक्कल कुरल (जनवाणी) के सम्पादक टी. आर. रामस्वामी.

पत्रकार विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का मुलायम और अखिलेश ने किया विमोचन

पत्रकार विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का मुलायम और अखिलेश ने किया विमोचन
 

'श्रमजीवी पत्रकारों को अधिक संख्या में पुस्तकें लिखनी चाहिए ताकि जनसाधारण का ज्ञान और बढ़े।' लोहिया पार्क में एक सार्वजनिक सभा में पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव तथा उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पत्रकार के. विक्रम राव की पुस्तक 'न रुकी, न झुकी यह कलम' का लोकार्पण करते समय यह सुझाव दिया। अनामिका (दिल्ली) द्वारा 45 लेखों का यह संग्रह विभिन्न राष्ट्रीय दैनिक में छपी रचनाओं का संकलन हैं। इसमें विविध विषयों पर विचारोत्तेजक लेख हैं।
इस अवसर पर श्री विक्रम राव ने कहा इतिहास ऐसी साजिशों की कथाओं से भरा है, जब जिह्ना को सुन्न किया गया। कलम को कुंद बनाया गया। अभिव्यक्ति को अवरुद्ध कर दिया गया। मगर विचार निर्बाध रहे क्योंकि उसे कैद करने की जंजीर इजाद नहीं हुई है। श्रमजीवी पत्रकार की लेखनी कबीर की लुकाटी की भांति है। घर फूंक कर वह जनपक्ष में जूझती है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा स्वाधीन भारत में अभिव्यक्ति के खिलाफ क्रूरतम दमनचक्र 1975-77 में चला था, तब विक्रम राव दूसरी जंगेआजादी की प्रथम पंक्ति में थे। अखबारी सेंशरशिप से लड़ते हुए वे भारत की छह जेलों और थानों में पुलिसिया अत्याचार सहते रहे। वे बाकियों से जुदा थे और हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सतीश सक्सेना आई एफ डब्लू जे की प्रदेश इकाई के संयोजक नियुक्त

वरिष्ठ पत्रकार सतीश सक्सेना आई एफ डब्लू जे की प्रदेश इकाई के संयोजक नियुक्त

भोपाल 20 अक्टूबर 2013। इंडियन फेड़रेशन ऑफ वर्किंग यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारणी की हरीद्वार में आयोजित बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव ने मध्यप्रदेश राज्य का संयोजक नियुक्त किया पूर्ण अधिकार सहित पूरे प्रदेश में सदस्यता अभियान एवं सभी जिलों में चुनाव करने का दायित्व वरिष्ठ है।

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पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के लिए मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 24 अक्टूबर को आने की संभावना है. 24 अक्टूबर को आखिरी सुनवाई होनी है और संभवतः इसी दिन फैसला आ जाना है. इसके पहले इसी महीने की एक तारीख और 3 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
पत्रकारों की तरफ से वकील बीके पाल और परमानंद पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान दिलाया कि इस वेज बोर्ड की सिफारिशों के लिए मीडियाकर्मी पिछले बारह साल से प्रतीक्षा कर रहे हैं. दोनों वकील ने अपील की कि अब इस प्रकरण पर फैसला आ जाना चाहिए. एक अक्टूबर और तीन अक्टूबर के दिन सुनवाई में क्या क्या चीजें हुईं, उसके डिटेल यूं हैं...

On 1st October 2013 Mr. Gopal Jain, learned counsel appearing on behalf of the petitioners in W.P.(C)No.246 of 2011 commenced his arguments at 10.45 a.m. and concluded at 3.00 p.m. Thereafter, Mr. P.P. Rao, learned senior counsel appearing on behalf of the petitioners in W.P.(C)No. 382 of 2011 made his submissions till the Court rose for the day. The matters remained part-heard.

On 3rd October 2013 Mr. P.P. Rao, learned senior counsel appearing on behalf of the petitioners in W.P.(C)No.382 of 2011 resumed his arguments at 10.40 a.m. and concluded at 2.45 p.m. Thereafter, Mr. Anil B. Divan,learned senior counsel appearing on behalf of the petitioners in W.P.(C)No. 315 of 2012 commenced his arguments and was on his legs till the Court rose for the day. The matters remained part-heard. List on 24th October, 2013 as first item